चाहाथा बहुत न देखे कोई सपना अब
तो इस चाहत ने ही छोडदिया मेरा साथ
कोई तमन्ना ही ना करूँ यह तमन्ना की
तो इस तमन्ना ने भी तोडदिया मेरा आस
क्या पाया क्या खोया यह न जानू मैं
जानू बस इतना कि खोकर कुछ खोया
तो कुछ पाकर खोदिया मैंने.....
मुस्कान की आड में सब दर्द छुपाया तो
दर्द झलकने लगा हर एक मुस्कान में...
छुपाये भी न जाये, बताये भी न जाये, हाये
कैसी पहेली है जो उलझती ही जाये!!!
(year 2002)
-तेजस्विनी
3 comments:
हाये..!. इतना नाराज़ होना क्या ज़रूरी है ?? ..कुच खोने का मत्लब कुच पाना ही हैना .. हम क्या लाये है इधर ..खोने और पाने के लिये ?? परंतु, कविता तो बहुत सुंदर है. शब्द संयोजन तो, मुझे पसंद लगा . घन्य्वाद.
mai to "MANASA" blog hamesha padta hnu, apka kavita Lajawab hai.
"जानू बस इतना कि खोकर कुछ खोया
तो कुछ पाकर खोदिया मैंने.....
"
Ufff ye dard....!!! kadava sach!!
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