Saturday, July 26, 2008

कविता

हमें न मालूम था

हमें न मालूम था
यादों को हम भूलकर भी
नहीं मिटा सकते
जब भी भूलना चाहा तो
वह एक भूल हो गयी
हमारे जीवन का एक ओर
हकीकत बन गयी

हमें न मालूम था

हँसाना
इतना आसान है

जितना हाँसना मुश्किल
सबको करार बाँटते हुए
खुद ही बेकरार हो गये हम
कुछ पाने की चाहत में
सब कुछ खो दिये हम

हमें न मालूम था
जिन्दगी एक अलग चीज है
जिन्दा रहना अलग बात है
जीतने चले थे सबके दिल को
मगर हार आये खुद हम
अपने ही जिन्दगी को..!!!

Tuesday, June 24, 2008

कसक

कसक

एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में
न कल का पता, न आज का होश
सिर्फ याद है उस पल का जो...
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में

कल था कुछ जो आजकेलिये नहीं है
जो है आज वह कल हो न हो ?!!
होगी शायद कल-आज और कल यही..जो
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में

एक प्रश्न घूमे हर घडी मन में
क्यों चुभ रही है कसक बार बार?
क्यों सिमट रहा है अन्जना सा डर?
क्यों याद आये मुझे हर बार..?
वही पल, अनजान असा डर...!!

Sunday, May 11, 2008

?


क्यों?

कभी तनहा करदे मुझे
मेरे यादों में
कभी खुशियँ भरदे
मेरे सूनी राहों में

हवा के झॊंके आये कभी
बिजली के साथ
पवन कभी ठंडक लाये
खुशबू के हाथ

क्यों आती हैं बहारें?
जैसे आके भी न आये हाथ!!
क्यों मिलते हैं लोग ऎसे?
मिलके बिछ्डने के बाद!!



आशा


छोटी सी आशा

बारिश के बूदें बनकर
बरसूँ भरदूँ सब नदियाँ, सागर
सारी गरमी सिमटके अन्दर
सबको देदूँ शीतलता का चादर

हवा में घूमूँ खुशबू बनकर
सबके मनको करदूँ मोहित
पत्ता, बूटा खिले हरतरफ
हर दिन हर पल हँसे बसंत

अगर साँस कभी रुक जाए
तो कोई गिला न हो मन में,
मिटेगा बस तन, नहीं यह जीवन
यही आस है इस दिल में ।