Tuesday, June 24, 2008

कसक

कसक

एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में
न कल का पता, न आज का होश
सिर्फ याद है उस पल का जो...
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में

कल था कुछ जो आजकेलिये नहीं है
जो है आज वह कल हो न हो ?!!
होगी शायद कल-आज और कल यही..जो
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में

एक प्रश्न घूमे हर घडी मन में
क्यों चुभ रही है कसक बार बार?
क्यों सिमट रहा है अन्जना सा डर?
क्यों याद आये मुझे हर बार..?
वही पल, अनजान असा डर...!!