Monday, July 16, 2012

और क्या दूँ सिर्फ़ चंद नगमोँ के सिवा.....!

Copyright : Tejaswini hegde
मेरी अश्कों मे घुलके भी जो नहीं धुलता
वो काजल से ही तेरी नज़र उतारुँ मैं
मुस्कुराहट जो छुपाये वो मेरे गम 
तेरे पास आनेसे पेहेले हवामे गुल होजाये
और क्या दूँ चंद नगमोँ के सिवा.....!

साथि तेरा साथ सात जन्मॊँका है
जानती हूँ मैं ये जानता है जंहाँ
लेकिन वक़्त-बेवक़्त के जेहर से बचकर
पार करना है हमें सौ साल, सदियाँ
और क्या दूँ चंद नगमोँ के सिवा.....!

हम ये जानते हैं कि ये हमारी दुनिया
मुक्तसर नहीं जैसे खिले हैं फूल बगिया 
तुम अगर साथ हो तो क्या परवा कल की
डोलते हुये नय्या को सहारा है तू सँय्या
और क्या दूँ चंद नगमोँ के सिवा.....!

-तॆजस्विनी

5 comments:

Krishnamurthy Hegde said...

Very nice :)

ಜಲನಯನ said...

तेजस्विनि जी बहुत अच्छे हैं आपके अल्फाज़ का इस तरह अंदाज़ से घुल मिल जाना. आप तो हिंदी में भी बहुत अच्छी कविता लिख लेती हैं

Shruthi B S said...

simply superb tejaswini akka.... i loved it....:)

Anonymous said...

Beautiful words Tejas :)

Chandrika

ತೇಜಸ್ವಿನಿ ಹೆಗಡೆ said...

Thanks a lot Chandrika :)