कसक
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में
न कल का पता, न आज का होश
सिर्फ याद है उस पल का जो...
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में
कल था कुछ जो आजकेलिये नहीं है
जो है आज वह कल हो न हो ?!!
होगी शायद कल-आज और कल यही..जो
एक कसक बनकर चुभ रही है मन में
अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में
एक प्रश्न घूमे हर घडी मन में
क्यों चुभ रही है कसक बार बार?
क्यों सिमट रहा है अन्जना सा डर?
क्यों याद आये मुझे हर बार..?
वही पल, अनजान असा डर...!!
7 comments:
मनॊचिंतन को बहुत अच्छी तरह से लिखा है - मन सिमटनेवाला यह पदपुंज बहुत अर्थपूर्ण है
न कल का पता, न आज का होश
सिर्फ याद है उस पल का जो...
एही जीवन है - न पता इस दिल में छुपा हुआ चेतन किधर से, कब आया, कब और किधर जाएगी
इसके ऊपर तो काबू न रख सकते हैं - हैं न जी?
मुझे यह भी बहुग अच्छा लगा
कल था कुछ जो आजकेलिये नहीं है
जो है आज वह कल हो न हो ?!!
यह गाना मेरे लिए बहुत प्यारा है
कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन
बीते हुये दिन वो मेरे प्यारे पलछिन
शुभ कामनाएं
गुरूदेव दया करो दीन जने
तिरुका जी,
प्रोत्साह केलिये बहुत धन्यवाद. आते रहियेगा. कृपया आपका शुभनाम और परिचय दीजियेगा. आपके ब्लाग कब शुरु होगा?
नमस्कार जी - तिरुका तो मेर ऒर्कुट आय.डि है - मेरा तो दो बच्छे हैं
१. ಮಾವಿನಯನಸ
२. ವೆಂಕಟೇಶ -
आपको तो मालूम होगा न
शुभ कामनाएं
गुरूदेव दया करो दीन जने
oh aap hindi main bi acchi kavitaye likti hain... ye tho kushi ki bhaat hain...
पंचमि जि,
आप के इस कविता में अर्थ तो बहुत है ।
जैसे आप् भी जानती हैं, हिंदि में निर्जीव शब्द् का भी लिंग होता है ।
सिर्फ दो ही लिंग में बटते हैं यहां - पुल्लिंग और् स्त्रीलिंग ।
इसलिये इन का इस्तेमाल सही होना बहुत ही अवश्य है यहां ।
'डर' पुल्लिंग है इस्लिये 'सिमट रहा है' होना चहिये ।
मैं कोयि पंडित नहिं हूं, बस आप को भी उन गलतियां करने से रोक रहा हूं, जो मैं ने शुरु में की थि ।
रुकिये नहिं आगे बढिये।
एं.डि. जी,
आपके प्रोत्साहकेलिये बहुत बहुत धन्यवाद.. गलती को सुधारनेकेलिये फिरसे शुक्रिया... आतेरहियेगा. ‘कसक’ में हुई गलती को सुधारलिया है. फिरसे अगर कुछ दिखा तो बेजिझक बतायिये. आज से आप मेरे हिन्दि गुरु हैं. आपको कोयी ऐतराज नहीं है ना?!
आप् कॆ कवितायॆं लगे मॆरॆ मन् कॊ..बस्गयॆ भावनावॊं मॆ,चूगयॆ कही दूर् सॆ आया हुवा मॆरॆ हि शब्ध् जैसॆ.
"अन्जाना सा डर सिमट रहा है दिल में
न कल का पता, न आज का होश
सिर्फ याद है उस पल का जो..." यॆ लैन्स् तॊ बार् बार् याद् आयेंगॆ..
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