Monday, December 27, 2010

झलख़

Courtesy - Google.
खुदा से ही बेवफायी कर बैठे हम,
न चाहते हुए भी तुझसे ही मोहब्बत
कर बैठे सनम!
दिल देना चाहा किसी ओर को
मगर, जान लुटाने लगे तुझपे ही
मेरे हमदम

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दिल कहता है,
नसीब हो तुम मेरे?
मन समझाता है....
तू नसीब है किसी और का!

-तेजस्विनी

Wednesday, August 11, 2010

नासूर

[http://www.thecreativenut.co.uk/]
कभी कुछ सुन ने केलिये
तुम मेरे पास नहीं थे तो
कभी कुछ कहने केलिये
मैं तेरे पास नहीं थी

कभी कुछ में ही
सब कुछ कहकर
चुप रही में तो
कभी सब समझकर भी
अन्जान बने रहे तुम भी

यह कैसी पहेली है?! जो
हर दिन हर पल उलझरही है!
हर वक्त यही प्रश्न उठे मन में.... जो
चुपकर चुभरही है बनकर एक नासूर!

-तेजस्विनि

Tuesday, April 13, 2010

पहेली

चाहाथा बहुत न देखे कोई सपना अब

तो इस चाहत ने ही छोडदिया मेरा साथ

कोई तमन्ना ही ना करूँ यह तमन्ना की

तो इस तमन्ना ने भी तोडदिया मेरा आस



क्या पाया क्या खोया यह न जानू मैं

जानू बस इतना कि खोकर कुछ खोया

तो कुछ पाकर खोदिया मैंने.....



मुस्कान की आड में सब दर्द छुपाया तो

दर्द झलकने लगा हर एक मुस्कान में...

छुपाये भी न जाये, बताये भी न जाये, हाये

कैसी पहेली है जो उलझती ही जाये!!!


(year 2002)


-तेजस्विनी