Tuesday, April 13, 2010

पहेली

चाहाथा बहुत न देखे कोई सपना अब

तो इस चाहत ने ही छोडदिया मेरा साथ

कोई तमन्ना ही ना करूँ यह तमन्ना की

तो इस तमन्ना ने भी तोडदिया मेरा आस



क्या पाया क्या खोया यह न जानू मैं

जानू बस इतना कि खोकर कुछ खोया

तो कुछ पाकर खोदिया मैंने.....



मुस्कान की आड में सब दर्द छुपाया तो

दर्द झलकने लगा हर एक मुस्कान में...

छुपाये भी न जाये, बताये भी न जाये, हाये

कैसी पहेली है जो उलझती ही जाये!!!


(year 2002)


-तेजस्विनी